Sunday, 19 June 2011

न्यायालय का उद्देश्य सत्य की स्थापना


सुप्रीम कोर्ट ने कालीराम बनाम हिमाचल प्रदेष राज्य (1973 एआईआर 2773) में कहा है कि न्यायालय भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के अनुसार प्राकृतिक घटनाओं, मानव आचरण तथा सार्वजनिक एवं निजी व्यवसाय के विषेश तथ्यों पर ध्यान देते हुए किसी तथ्य की घटित होने की स्थिति मान सकता है । इस धारा में दिये गये उदाहरण मानव की विभिन्न गतिविधियों के क्षेत्रों से लिए हुए हैं किन्तु परिपूर्ण नहीं है। वे मानव अनुभव पर आधारित है और प्रत्येक मामले के परिपेक्ष्य में लागू किये जाने है। प्रत्येक मामले के तथ्यों के अनुसार इस धारा की परिस्थितियों में अन्य मान्यताएं भी हो सकती है। निष्चित रूप से यह एक प्राथमिक सिद्धान्त है कि एक अभियुक्त दोश सिद्ध किये जाने से पहले दोशी होना चाहिए न कि दोशी हो सकता है और हो सकता है तथा होना चाहिए में निष्चितता के आधार पर बड़ा अन्तर है।
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट बनाम हिमांषु इन्टरनेषनल (एआईआर 1979 एस सी 1144) में कहा है कि इस धारा पर आधारित समय सीमा के अभिवचन पर यह न्यायालय विपरीत दृश्टिकोण लेता है तथा यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पोर्ट ट्रस्ट जैसे लोक प्राधिकरण, नैतिकता और न्याय की दृश्टि से नागरिक का वाजिब दावा विफल करने के लिए ऐसा तर्क ले रहे हैं। यह समय आ गया है जबकि सरकार और लोक प्राधिकारियों को इस प्रकार के वाजिब दावे तकनीकी आधारों पर विफल करने की परम्परा पर निर्भर नहीं रहना चाहिए और वही करना चाहिए जो कि नागरिकों के लिए उचित व न्यायपूर्ण हो।
सुप्रीम कोर्ट ने राश्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाम गुजरात राज्य के निर्णय दिनांक 01.05.09 में कहा है कि यह महत्वपूर्ण है कि कानून उचित एवं न्यायपूर्ण हो इसके लिए आवष्यक है कि यह दोश रहित हो। यह न्याय के साथ वचन निभा सके और यह दूशित न हो तथा तटस्थ रहे। कानून को इस तरह षांत बैठा नहीं देखा जाना चाहिए कि जो इसका उल्लंघन करे बच निकले तथा जो इससे संरक्षण मांगे वह आषा छोड़ दे। एक दार्षनिक ने कहा है कि कानून मकड़जाल की तरह है यदि कुछ हल्का या कमजोर इसके अन्दर गिरता है पकड़ा जाता है और बड़ा इसके अन्दर से होता हुआ बाहर निकल जाता है। कानून के प्रारम्भ से ही यह धारण रही है कि न्यायालय का उद्देष्य सत्य की खोज, अन्वेशण तथा स्थापना है। इस न्यायालय ने धारित किया है कि एक अंतिम /बन्द रिपोर्ट जिसे अभियोजन ने प्रस्तुत किया हो सूचित कर्ता को सुने बिना स्वीकार नहीं की जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने ठाकुर सुखपालसिंह बनाम ठाकुर कल्याणसिंह (1963 एआईआर 146) में कहा है कि मात्र इस आधार पर जिला न्यायाधीष द्वारा अपील निरस्त करना न्यायोचित नहीं है कि वह बहस नहीं कर सकता। दी गई परिस्थितियों में उसके लिए आवष्यक था कि वह अपील के आधारों पर विचार करता और मामले पर गुणावगुण के आधार पर निर्णय करता। उसने ऐसा नहीं किया है।

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