हिमाचल प्रदेश उच्च
न्यायालय ने सुरेशकुमार शर्मा को अवैध हिरासत में रखने के प्रकरण में राज्य सरकार
को 2 लाख रुपये मुआवजा देने और घटना में संलिप्त आई ए एस अधिकारी के विरुद्ध
अनुशासनिक कार्यवाही को 3 माह की अवधि में निपटाने के निर्देश दिए हैं|
न्यायाधिपति राजीव शर्मा ने सुरेश कुमार शर्मा की रिट याचिका पर हिमाचल राज्य को दिनांक 2.9.13 को यह आदेश दिया
है| स्मरण रहे कि न्यायालय ने पूर्व में ही दिनांक 23.05.13 को सुनवाई कर अंतरिम आदेश दिया था कि
चूँकि आई ए एस - बी आर कमल और तहसीलदार सिद्धार्थ आचार्य ने याची की स्वतंत्रता का
हनन विधि विरुद्ध रूप से किया है अत: उनके विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही की जाये और
उन्हें निलंबित कर दिया जाए| साथ ही न्यायालय ने यह भी आदेश दिया था कि सरकार हर्जाने के
लिए रुपये दो लाख न्यायालय में अग्रिम जमा करवाएं |
याची सुरेश
कुमार शर्मा ने उपखंड मजिस्ट्रेट के दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 107 और 151 (
जिसका आम तौर पर दुरूपयोग किया जाता है) के अंतर्गत उसकी गिरफ्तारी के आदेश को
चुनौती देते हुए आरोप लगाया था कि उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अनुचित हनन हुआ है
व उसे 72 घंटे से अधिक अवधि के लिए हिरासत में रखा गया और जमानत मुचलका स्वीकार
नहीं किया गया| याचिका में आरोप लगाए गए हैं कि याची ने उसके गाँव के दो
व्यक्तियों द्वारा 60 बीघा सरकारी भूमि पर अतिक्रमण के विषय में उसने कई शिकायतें
की थी| यद्यपि अतिक्रमण हटा दिया गया किन्तु अप्रसन्न होकर उसे झूठे मामले में
फंसा दिया गया| नतीजन रोहरू के उपखंड
मजिस्ट्रेट बी आर कमल ने अतिक्रमियों की झूठी शिकायत पर दिनांक 7.7.09 को याची की
गिरफ्तारी के आदेश जारी किये और उसे तीन बाद गिरफ्तार किया गया और तत्कालीन कार्यवाहक
उपखंड मजिस्ट्रेट तहसीलदार जुब्बल सिद्धार्थ आचार्य ने उसका जमानत मुचलका स्वीकार
नहीं किया| याची को दिनांक 13.07.09 को मुक्त किया गया और बाद में कार्यवाही बंद
कर दी गयी |
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 107 में यह प्रावधान है कि पर्याप्त आधार होने पर
मजिस्ट्रेट सम्बद्ध व्यक्ति से शांति बनाए रखने के लिए मुचलका प्रस्तुत करने की अपेक्षा
कर सकता है| धारा 109 में मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति को प्राप्त सूचना का सार, मुचलका
की रकम, प्रतिभुओं की संख्या, प्रकार और
वर्ग बताते हुए कारण दर्शित करने की अपेक्षा करेगा| न्यायालय में ऐसा व्यक्ति
उपस्थित होने की दशा में उसे यह सार बताया जाएगा| धारा 113 के अनुसार ऐसे व्यक्ति
की उपस्थति के लिए समन जारी किया जाएगा और गिरफ्तारी का वारंट केवल अत्यावश्यक परिस्थितियों
में ही जारी किया जाएगा | समन या वारंट के साथ ऐसे आदेश की प्रति गिरफ्तार व्यक्ति
को दी जायेगी| धारा 116(1) के अनुसार ऐसे व्यक्ति के उपस्थित होने पर शिकायत
की सत्यता की जांच की जाएगी और उचित होने
पर अतिरिक्त साक्ष्य लिया जाएगा| धारा 116 (3) के परंतुक के अनुसार, धारा 108, 109
या 110 के अलावा, जांच किये बिना अंतरिम
अवधि के लिए मुचलका के लिए निर्देश नहीं दिए जा सकते| जबकि प्रकरण में पुलिस
अधिकारी के बुलाये जाने पर याची उपस्थित हुआ और उसे गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट के समक्ष
प्रस्तुत किया गया| उसके द्वारा प्रस्तुत व्यक्तिगत मुचलका और उसके पिता द्वारा प्रस्तुत
मुचलका को भी इस बनावटी आधार पर अस्वीकार
कर दिया गया कि उसमें सम्पति के विवरण नहीं हैं| बाद में सम्पति के विवरण सहित
आवेदन प्रस्तुत करने पर ही उसे रिहा किया गया|
याची को कानूनन एक बार में 24
घंटे से अधिक अवधि के लिए हिरासत में नहीं भेजा जा सकता था किन्तु उसे दिनांक 10.07.09 से 13.07.09 तक 72
घंटे हिरासत में भेजने का अवैध आदेश दिया गया| यदि याची द्वारा प्रस्तुत मुचलका में
सम्पति का पूर्ण विवरण नहीं था तो उसे तीन दिन बाद के स्थान पर उसी दिन विवरण
प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जा सकती थी| लेखक का विनम्र मत है कि मजिस्ट्रेट 24
घंटे ड्यूटी पर होता है तथा बिना अनुमति व वैकल्पिक व्यवस्था के वह मुख्यालय भी
नहीं छोड़ सकता| इसी दृष्टिकोण से दंड प्रक्रिया संहिता में “मजिस्ट्रेट न्यायालय” शब्द के स्थान पर मात्र “मजिस्ट्रेट” शब्द का प्रयोग किया गया
है अर्थात मजिस्ट्रेट द्वारा कार्यवाही करने के लिए न्यायालय लगा होना आवश्यक नहीं
है क्योंकि न्यायालय का निर्धारित समय और छुट्टियां होती हैं जबकि ये मजिस्ट्रेट
पर लागू नहीं होती| जब मजिस्ट्रेट छुट्टी के समय या दिन शांति रखने के लिए आदेश दे
सकता है तो फिर वह जनता का सेवक होते होते हुए जमानत के लिए मना कैसे कर सकता है|
याचिका की सुनवाई के समय
न्यायालय ने पाया कि याची की गिरफ्तारी की सम्पूर्ण प्रक्रिया में निर्धारित आवश्यक
कानून की अनुपालना नहीं की गयी है और इसमें दुर्भावाना की बू आती है| यह सम्पूर्ण
कार्यवाही सरकारी भूमि पर अतिक्रमियों की सह पर की गयी है| याची के विरुद्ध उक्त
अनुचित कार्यवाही को निरस्त करते हुए न्यायालय ने आगे आदेश दिया कि सरकार याची को
दो लाख रूपये का हर्जाना दे व सरकार चाहे तो हर्जाने की राशि की वसूली आई ए एस और
तहसीलदार से कर सकती है तथा उनके विरुद्ध प्रारंभ की गयी अनुशासनिक कार्यवाही को तीन
माह की अवधि में निपटा दिया जाये| न्यायालय ने आगे यह भी आदिष्ट किया है कि सरस्वतीनगर पुलिस चौकी के सहायक उप निरीक्षक ओम
प्रकाश, जोकि उक्त गिरफ्तारी में संलिप्त रहा है, को भी समान रूप से निलंबित किया
जाए और उसके विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही को भी 3 माह की अवधि में निपटाया जाय| सरकारी
भूमि पर अतिक्रमण करने वालों के विरुद्ध कार्यवाही की जाये|
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