पुलिस तो एक रासायनिक यौगिक है जो पैसा
+पॉलिटिक्स+प्रेशर से तैयार होता है |हम
भ्रम में रहते हैं तो यह कसूर हमारा है|
पुलिस और ईमानदार दो विरोधा भाषी बातें
हैं| मैंने सुना तो बहुत है पर आजतक एक भी ईमानदार
पुलिसवाला नहीं देखा|अगर कोई ईमानदार है भी तो वह साहसी नहीं
है| उसकी ईमानदारी किस काम की| पुलिस में रहकर जो ईमानदार दिखाई देते
हैं समझिये वे ईमानदार तो नहीं किन्तु खुले रूप से भ्रष्ट नहीं हैं| पुलिस से
ज्यादा डरपोक और कोई नहीं होता जोकि साल में
भारत में ही दस हज़ार से ज्यादा लोगों को फर्जी मुठभेड़ और हिरासत में मारती है| पुलिस में ऐसा वातावरण ही नहीं होता कि
वहां ईमानदारी पनपे| गलती से यदि कोई ईमानदार पुलिस में भर्ती
हो भी जाए तो वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकता| पुलिस में भर्ती होने वाले भी परिस्थितियाँ जानते हैं और सोच समझकर भर्ती होते हैं| जिस तरह तेज हवा से तालाब में तैरता कचरा एक
तरफ इकठा हो जाता है उसी तरह का कचरा यह पुलिस है
जो एक तरफ इकठा हो जाता है| जो
कुछ थोड़ा बहुत अच्छा दिखाई दे रहा है वह नाक बचाने के लिए ईमानदारी का नाटक ही है| किरण बेदी जैसी साहसी कही जाने वाली महिला
सेवानिवृति के 5 साल बाद कहती है कि उससे रिश्वत मांगी गयी
-जो स्वयं के साथ हुए अन्याय का विरोध
नहीं कर सके वह दूसरों को क्या न्याय दिल देंगी| पुलिस का मतलब पुलिस है चाहे उसका पद, जाति या वर्ग कुछ भी हो| इन्हीं
कारणों से बिहार और उत्तर प्रदेश में पुलिस को बड़े लोक प्रिय नामों से जाना जाता
है| पुलिस वाले राजनेताओं से भी अधिक कूटनीतिज्ञ होते हैं | पुलिस वाला यदि किसी
प्रभाव में है तो वह आपका स्वागत सत्कार तो कर देगा, चाय नाश्ता दे देगा किन्तु
फिर भी वह आपका काम कभी नहीं करेगा| यह मेरा अनुभव है कोई कल्पना नहीं है| जमीन के
फर्जी बेचान के मामले में जांच मेरे एक सहपाठी पुलिस निरीक्षक के पास थी और 3 साल तक
उसमें कोई कार्यवाही नहीं हुई| बाद में वही फाइल मेरे एक सह कर्मी के बड़े भाई के पास आ गयी किन्तु टस से मस नहीं हुई| बाद में गियर लगाने पर ही गाड़ी आगे बढी|
पुलिस को ट्रेनिंग में ही यह सब बताया जाता है – कैसे उत्पीडन
करना है, किस प्रकार पैसा ऐंठना है, कैसे
गालियाँ बकनी हैं आदि आदि | वहां हवलदार होता है जो डी एस पी तक को गालियाँ बकता
है और गलियां सुनते सुनते ये पुलिस वाले ढीठ हो जाते हैं | बाद में इन्हें बड़े
अधिकारी या नेता गालियाँ बकें तो इन पर कोई ज्यादा असर नहीं होता है| यों तो पुलिस
लोगों से हफ्ता लेती है किन्तु पत्रकार समुदाय को यह इस बात के लिए हफ्ता देती है
कि वे उसके सराहनीय कार्यों को उजागर करें और बदनामी वालों को दबा दें| इसके लिए
वे पत्रकारों तक समाचार स्वयम पहुंचा देते हैं अथवा छापा मरने के लिए जाते समय
उन्हें सूचित कर देते हैं| तभी तो छापे के समाचार सचित्र आ जाते हैं |
एक रिटायर्ड पुलिस वाले ने बातचीत में बताया कि रिटायरमेंट
के बाद सबसे ज्यादा दुर्गति उनकी ही होती है| समाज में उन्हें कोई सम्मान से नहीं
देखता |यह पुलिस वालों को भी ज्ञान है | सी बी आई के एक भूतपूर्वक निदेशक फेसबुक
पर हैं किन्तु उन्होंने अपनी पुलिस सेवा का खुलासा नहीं किया है| एक
सेवानिवृत पुलिस महानिदेशक,
जो
पुलिस सुधार के नाम पर सुर्ख़ियों में हैं, से एक सेवा निवृत कनिष्ठ पुलिस अधिकारी ने पुलिस सुधार
के प्रसंग में संपर्क करना चाहा किन्तु उन्होंने
समयाभाव बताकर मना कर दिया| किन्तु उन्ही महानिदेशक से जब 15 मिनट बाद ही उसी कनिष्ठ ने एक विदेशी महिला के साथ
जाकर भेंट की तो वे बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने न सिर्फ उन्हें चाय नाश्ते से
स्वागत किया बल्कि दोपहर का भोजन भी करवाया!
No comments:
Post a Comment