सरकारी बैंकों में छोटी बचत वाले वे
लोग धन जमा करवाते हैं जिनके पास धन लगाने को कोई व्यवसाय नहीं होता और इन छोटी
छोटी बचतों को इकठा करके बैंकें बड़े
उद्योगपतियों को ऋण देती हैं | इन जमाकर्ताओं में एक बड़ा वर्ग बुढ़े बुजुर्गों,पेंसनरों
और ऐसे लोगों का भी शामिल है जो कि ब्याज
से अपनी आजीविका चलाते हैं | लगभग 30 साल पहले सरकार ने रिजर्व बैंक के उप गवर्नर
की अध्यक्षता में एक कमिटी का गठन किया था जिसने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि बैंकों की
मियादी जमा की ब्याज दरें महंगाई की दर से 2% अधिक होनी चाहिए ताकि उन लोगों को लाभ मिल सके और बचतें
प्रोत्साहित हो सकें | अन्यथा यदि मंहगाई की दर ब्याज से अधिक होगी तो लोगों को
बचत पर ऋणात्मक ब्याज मिलेगा और लोग बचत
करने की बजाय उन वस्तुओं में निवेश करना
चाहेंगे जिनमें महंगाई की दर अधिक है | भारत में स्वतंत्रता से लेकर अब तक की महंगाई
की औसत दर 10% वार्षिक के लगभग आती और गत
दशक के लिए तो यह 12% के आसपास है | ऐसी
स्थिति में बैंकों की मियादी जमा की दर अब 14% के आसपास होनी चाहिए | प्राथमिकता
क्षेत्र को ऋण के लिए तो सरकार ने ब्याज दरें नियत कर ही रखी हैं और ब्याज दर नीची
रखने का फायद सिर्फ बड़े उद्योगपतियों को मिलता है |
ब्याज दर काम होने और महंगाई की दर
अधिक होने से ही जमीन जायदाद और अन्य आवश्यक वस्तुओं में धन लगाने, मांग बढ़ाकर
कीमतें ऊँची करने की प्रवृति पनपती है |
भारत में स्वर्ण , स्त्री और जमीन ( GOLD,
LAND and WOMEN ) में
निवेश करने की सदा से प्रवृति रही है और इनका ज्यादा से ज्यादा संचय
करना प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता रहा है | इस कारण भारत में उद्योग व्यवसाय के लिए
पहले से ही बहुत कम धन उपलब्ध रहता है | भारत में आज भी निजी क्षेत्र में ऐसी एक भी राष्ट्रीय स्तर की बैंक
या वित्त कंपनी नहीं है जिसका 20 साल से ज्यादा उज्जवल इतिहास हो | बहुत सी आई .....और
फ़ैल हो गयी या अन्य में विलीन हो गयी | पीयरलेस, पर्ल्स , सहारा
आदि इसी श्रृंखला के कुछ नाम है | अत: जनता के पास सरकारी बैंकों में धन
जमा करवाने के अतिरिक्त कोई सुरक्षित उपाय नहीं है | सरकार इस विकल्पहीनता का अनुचित
लाभ उठाकर निजी उद्योगपतियों को फायदा पहुँचाना चाहती है और छोटी
बचत करने वाली जनता का शोषण करना चाहती है ताकि महंगाई की दर से नीची दर पर ऋण मिले तो उद्योगपति यदि कुछ
उत्पादन नहीं करे तो भी उसकी सम्पति की कीमत में वृद्धि हो |
उद्योंगों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में पेट्रोलियम का
प्रयोग होता है और गत समय से पेट्रोलियम
के दाम लगातार गिर रहे हैं जबकि इसका सरकार न जनता को पूरा लाभ देना चाहती और न उद्योंगों को |बल्कि इन पर उत्पाद शुल्क और
बिक्री कर बढ़ा रहे है | वाह रे भारत
की कल्याणकारी सरकार ! जो लाभ जनता और
उद्योगों को बिना किसी हानि के मिले उसको और कर
लगाकर छीने और कमजोर लोगों को जमा पर देय ब्याज दर घटाए ताकि बैंकें
उद्योगों को सस्ते ऋण दे सकें | ताजुब होता है जब सरकार देश के लोगों को कम ब्याज
देना चाहे औए विदेशियों को यहाँ निवेश के लिए अतिरिक्त छूट देना चाहे| स्मरण रहे
ये यही अरुण जेटली हैं जिन्होंने अलग चाल, चरित्र और चेहरा का दवा करने वाली गत
भाजपा सरकार पर कुछ आरोप लगने पर कहा था कि राजनीति कोई साधु संतों का काम नहीं है | वित्तमंत्री हमारे हैं या
उद्योगपतियों के जो रिज़र्व बैंक के गवर्नर पर ब्याज दर घटाने के
लिए दबाव डाल रहे हैं ?
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