न्यायपालिका
सहित ,
आज देश का पूरा शासन तंत्र,
और सारे राजनैतिक दल जन
विरोधी लगते हैं | इस देश में पञ्च तत्वों के अपवित्र गठबंधन
का शासन है - संगठित अपराधी, धन्ना सेठ , राजनेता, अधिकारी
और न्यायाधीश | नागरिक के पास तो 5 वर्ष
में वोट डालने के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता | उसकी शिकायतें
तो रद्दी की टोकरी की भेंट चढ़ जाती हैं - शासन चाहे किसी भी पार्टी को है - इस
गुणधर्म और चरित्र में कोई अंतर नहीं आता |
भारत के मुख्य
चुनाव आयुक्त शेषन ने लगभग 20 वर्ष पूर्व
कहा था कि लोकतंत्र के चार स्तम्भ होते हैं और उनमें से साढ़े तीन
क्षतिग्रस्त हो चुके हैं --अब तक कितने बचे हैं अनुमान लगाया जा सकता है | गरीबी के विषय में भी इन
लोगों का कुतर्क होता है कि धन मेहनत से कमाया जा सकता है |मेरा इन धनिकों से निवेदन है की
क्या वे एक मजदूर से ज्यादा मेहनत करते हैं जो दिन भर पसीना बहाने के बावजूद
मूलभूत सुविधाओं से वह और उसका परिवार वंचित रहता है | वस्तु स्थिति तो यह है कि धन संचय , तो बेईमानी, और दूसरों का हक छीन कर
ही किया जा सकता है | दूसरों की वस्तुएं और सेवाएं कौड़ियों के दाम सस्ती लेकर
उन्हें महँगी बेचकर संचय ब्लैक करके , कृत्रिम कमी करके मुनाफाखोरी से ही यह संभव
है | और पूंजी भी तो संचित श्रम ही है क्योंकि सभी वस्तुएं तो प्रकृति ने सृष्टि में निशुल्क उपलब्ध करवाई हैं |
आम
नागरिक को ट्रैफिक की तरह सभी राजनैतिक दलों से समान और सुरक्षित दूरी रखनी
चाहिए क्योंकि राजनेताओं
का यह पेशा है उससे ही उनकी आजीविका चलती है |
पार्टी कार्यालयों को चंदे के नाम पर भारी प्रोटेक्शन मनी मिलती है जिनसे
पार्टी कार्यालयों के खर्चे चलते हैं
अन्यथा जो कार्यकर्ता पार्टी कार्यालयों में जुटे रहते हैं उनके जीवन यापन और चुनावी खर्च का कौनसा स्वतंत्र आधार है | जहां तक
जागरूकता का प्रश्न है तो देश में अभी मात्र 6 करोड़ लोग ही ग्रेजुएट या अधिक
शिक्षित हैं |
बदसूरत
व्यक्ति को यदि शीशा दिखाओ तो अगर वो समझदार होगा तो अपने स्वरूप को स्वीकार करेगा
। यदि मूर्ख या पागल हुआ तो शीशा तोड़ने को आएगा । स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने करतार
सिंह बनाम पंजाब राज्य (1956 AIR 541) के मामले में कहा है कि जो
कोई लोक पद धारण करता हो उसे उस पद से जुड़े आलोचना के हमले को, यद्यपि दुखदायी है, स्वीकार करना चाहिए|
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