वैसे
तो अब केजरीवाल की कई महिमा गाथाएं मीडिया में उपलब्ध हैं और वे
अपने आपको आम आदमी बता रहे हैं | केजरीवाल ने सूचना कानून आने के बाद सक्रियता दिखाई और कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों –
फिल्म स्टारों , क्रिकेटरों आदि के
सानिद्य में कई सभाएं की और भ्रष्टाचार के
विरुद्ध खड़े नजर आये | इच्छुक व संभावित
भागीदार व्यक्तियों को डाक द्वारा और फोन
से भी आमंत्रण भेजे गए थे | उनके कार्यालय
में होने वाली फोन कालों का जवाब भी दिया जाता था | उनके ही एक सहयोगी श्री सोमनाथ
भारती ने दिनांक 12.2.12 को मुझे भी अपनी टीम में शामिल होने का निमंत्रण दिया था
| किन्तु मैंने अपनी आशंकाएं व्यक्त की – “Though I have no hesitation to join a team with
real Cause. But I see there is no organisation in India which has dealt ANY PROBLEM
from grass root level. Most of the organisations (backed by this or that party)
are prestige hungry and hardly do any social work except exhibitive nature
superfluous jobs. If any
organisation would have bailed out India from the problem, the legislatures are
the best organisations even elected by people. If associations of elected
representatives in India can't make any dent it can't be believed that any
organisation on Bharatbhumi may do conceptual work of sustainable nature.”
किन्तु
गत बार मुख्य मंत्री बन जाने
के बाद घंटों तक इंतज़ार के बावजूद उनसे विमर्श नहीं हो सका | मेरे एक दिल्ली निवासी मित्र ने भी पुलिस, प्रशासन
और न्याय व्यवस्था में सुधार के लिए कई बार
उनसे संपर्क का प्रयास किया | किन्तु वे
सभी निरर्थक रहे | अब वे कितने आम हैं और
जनता के दुखदर्द में कितने भागीदार होंगे , भविष्य के गर्भ में है | भारतीय जनता
पार्टी को हराना कोई बड़ी बात नहीं है |
राजनारायण ने भी इंदिरा गाँधी को टक्कर दी
थी किन्तु उनका सृजनात्मक योगदान क्या रहा
|
राजनेता
चुनाव में पैसा इस लिए खर्च करते हैं, क्योंकि इन्हे जनप्रतिनिधि बनना
है, विधान सभा, लोकसभा या स्थानीय निकायों में जनप्रतिनिधि
बनकर इनका कहना है, कि ये जनता की सेवा करेंगे, बिना
जनप्रतिनिधि बने ये कोई सेवा नही कर सकते, क्योंकि सेवा करना
इनकी आदत में नही है, कभी आम जनता के प्रश्न पर आंदोलन करते हुए नही देखे गये, मुहल्ले में लोगों के भले में काम करते हुए नही देखे गये, मज़दूर और किसान की बात चुनाव के दौरान ही करते देखे जा रहे हैं, वरना निजी ज़िंदगी मज़दूरों से नफ़रत करते हुए गुज़री है, किसानों को जाहिल गँवार कहते हुए इनके मुँह से अक्सर सुना जाता है,
ऐसे कितने ही प्रत्याशी हैं, जो निजी स्वार्थ
के लिए, अपने काले धंधे छुपाने और सरकारी अधिकारियों पर धौंस
जमाने के लिए चुनाव लड़ते हैं, एक बार चुनाव लड़ने के बाद
नेता होने का लेबल इनके नाम के साथ जुड़ जाता है, जीतें या
हारें, लेकिन फिर वो गैर क़ानूनी धंधे धड़ल्ले से कर सकते
हैं, क्योंकि प्रशासन इनसे ख़ौफ़ खाएगा, मुहल्ले के गुंडे इनके दोस्त बन जाएँगे| तमाम नाजायज़ कार्य करने की इनको
छूट मिल जाएगी, ऐसी है चुनाव लड़ने के पीछे मानसिकता,
तमाम घाघ किस्म के लोग राजनीति को कितना भ्रष्ट और गंदा करेंगे,
कुछ कहा नही जा सकता."
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