प्रार्थी न्यायिक अधिकारी होते हुए एल एल एम की परीक्षा में बैठा था तथा परीक्षा में अनुचित साधनों के उपयोग का दोषी पाये जाने पर सेवामुक्त कर दिया गया था ।सुप्रीम कोर्ट में याचिका दयाषंकर बनाम इलाहाबाद उ. न्या. ( ए. आई. आर. 1987 स. न्या. 1469) में कहा गया कि कोई भी इन्कारी उसे उजागर सख्त तथ्यों से परे नहीं कर सकती। याची का आचरण न्यायिक अधिकारी के रूप में असंदिग्धतः अयोग्य है। न्यायिक अधिकारी दो तरह के आचरण- एक न्यायालय में तथा दूसरा न्यायालय के बाहर- नहीं अपना सकते। उन्हें मात्र खरापन, ईमानदारी और निश्ठावान का एक मात्र मानक अपनाना चाहिए। जिस पद को वे धारण करते हैं वे दूर तक भी उसके अयोग्य होने वाला कार्य नहीं कर सकते। याचिका निरस्त कर सेवामुक्ति को उचित ठहराया गया ।
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