लिपोक की अन्वीक्षण न्यायालय द्वारा दोषमुक्ति के विरुद्ध गौहाटी उच्च न्यायालय से समय सीमा में छूट की मांग सहित अपील की गयी जिसे अस्वीकार करने पर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका नागालैण्ड राज्य बनाम लिपोक के निर्णय दि 01.04.05 में कहा गया कि अपील दायर करने के निर्णय की स्थिति में अपील दायर करने के लिए जिम्मेवार अधिकारी द्वारा तुरन्त कार्यवाही करने की आवष्यकता है तथा यदि कोई कमी रहती है तो उसके लिए उसे व्यक्तिषः दायी ठहराया जाना चाहिए। राज्य को एक व्यक्ति के समान धरातल पर नहीं रखा जा सकता। एक व्यक्ति यह निर्णय लेने में फुर्ती करेगा कि उसे अपील या आवेदन द्वारा कोई उपचार प्राप्त करना है क्योंकि वह ऐसा व्यक्ति है जो विधितः क्षतिग्रस्त है जबकि राज्य एक अव्यक्तिगत तन्त्र है जो अपने अधिकारियों या सेवकों के माध्यम से कार्य करता है। यह पाया गया है कि कड़े स्तर के प्रमाण अपनाना कई बार लोक न्याय की रक्षा में असफल रहता है और इससे अपील दायरी की प्रक्रिया में कुषलता द्वारा विलम्ब की सार्वजनिक कुचेश्टा परिणित होगी। समय सीमा में छूट अनुमत कर दी गयी।
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