काले ( चमड़ी और मन दोनों) अंग्रेजों द्वारा जनता में यह भ्रम प्रसारित किया गया
कि हमारा अपना संविधान लागू हो गया
है जबकि वर्तमान संविधान के मौलिक प्रावधान भारत सरकार अधिनियम 1935 की 95प्रतिशत नकल मात्र हैं | अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून जनता पर थोपे गए एक तरफा
अनुबंध थे और उन पर
जनता की कोई सहमति नहीं थी | आज भी जो कानून बनाए जा रहे हैं वे भी इस देश में
रहने की शर्त हैं और उनमें भी जनता की कोई सहमति नहीं है | कानून इतने दुरूह बनाए जाते हैं कि उन्हें समझना और उनकी अनुपालना जनता के लिए
कठिन ही नहीं बल्कि लगभग असंभव है |इसलिए जनता को किसी भी अधिकारी द्वारा इस मकडजाल में फंसाया जा
सकता है और शोषण किया जा सकता है | अधिकारियों को तो कोई शक्ति नहीं दी जाए तो भी वे झूठ मूठ की शक्तियां अर्जित कर लेंगे, फंसाते रहेंगे और माल बनाते
रहेंगे | पुलिस को किसि भी कानून में यातना देने की शक्ति नहीं है फिर भी वह सब कुछ करती है| कुछ
दुर्बुद्धि लोग कहते हैं कि अप्राधितों को तो यातना डी जा सकती है |यदि अपराधी के दोष और दंड का
निर्धारण पुलिस की शक्तियों में ही है तो फिर न्यायालयों की क्या आवश्यकता है | यदि पुलिस द्वारा ऐसी यातनाएं उचित हैं तो फिर जो यह सलूक छोटे मोटे अपराधियों के साथ किया जाता है वही फिर इन घोटालेबाज नेताओं के साथ क्यों नहीं ?
किसी भी को कार्य करने के लिए कोई कारण होना आवश्यक है |बिना
प्रेरणा के कोई कार्य नहीं होता यह कानून की भी धारणा है| सरकारी अधिकारी, पुलिस और न्यायिक अधिकारियों
का मानना है कि वेतन तो वे पद का लेते
हैं, जनता को काम करवाना है तो पैसे देने पड़ेंगे | और तरक्की तो अपने बड़े
अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों को खुश
करने, सेवा करने मात्र से मिलती है, कर्तव्य पालन से नहीं | इनके लिए कोई आचार
संहिता भी नहीं है | इन्हें दण्डित करने के लिए कोई मंच भी देश में नहीं है| सेवा से हटाने के विरूद्ध उन्हें संविधान का
पूर्ण संरक्षण प्राप्त है और न्यायालय से दण्डित होने पूर्व उन्हें दंड प्रक्रिया
संहिता की धरा 197 का पूर्ण संरक्षण प्राप्त है| फिर भला कोई सरकारी अधिकारी
कर्मचारी जनता का कोई काम क्यों करे ? कर्मचारियों और नेताओं को यह पता है कि उनका कुछ भी नहीं बिगड़ने वाला है वे चाहे जो
मर्जी करें अन्यथा वे बिजली के नंगे तार को हाथ लगाने का दुस्साहस क्यों नहीं करते |जिस
प्रकार अंग्रेजों से सत्ता हथियाने के लिए
आन्दोलन चले और गांधीजी को बिडला जैसे परिवारों ने धन दिया ठीक उसी प्रकार आज विपक्षी
से सत्ता हथियाने के लिए सब हथकंडे अपनाते हैं | व्यवस्था परिवर्तन में किसी की कोई रूचि नहीं है | देश सेवा करने के नाम नेता सत्ता पर काबिज होते हैं और मेवा प्राप्त करने का
उद्देश्य छिपा रहता है |भारतीय राजनीति सेवा नहीं अपितु मेवा प्रति का एक अच्छा साधन है | देश में 70प्रतिशत लोग कमजोर और गरीब हैं और देश के राजनेताओं से एक ही यक्ष प्रश्न है कि उन्होंने
उनकी सुरक्षा , न्याय और सहायता के लिए कौनसा टिकाऊ काम 67 साल में किया है
|
जिस प्रकार पौधों को पानी तो नीचे जड़ों से प्राप्त होता है
किन्तु पोषण ऊपर पतियों से प्राप्त होता है वैसे ही भ्रष्टाचार का पोषण और संरक्षण
ऊपर से मिलता है |निचले स्तर पर यदि कोई
अधिकारी ईमानदार है और अनुचित काम के लिए मना भी
करदे तो वही काम रिश्वत लेकर ऊपर
से मंजूर हो जाएगा| इस व्यवस्था
में ऊपर वालों को वैसे भी प्रसन्न रखना
जरुरी है | अत: यदि निचले स्तर पर कोई अधिकारी किसी अनुचित काम के लिए मना करे दे तो नाराजगी झेलनी
पड़ेगी और जो कमाई होनी थी वह उससे भी वंचित हो गया फिर भी वह अनुचित काम को रोक नहीं पाया |इसलिए
इन परिस्थितियों में निचले अधिकारी भी रिश्वत लेना ही श्रेयस्कर समझते हैं |
सरकारों द्वारा स्थापित शिकायत समाधान प्रणालियाँ
भी जनता को बनाने के लिए एक दिखावा और
छलावा मात्र हैं| किसी नागरिक के
संवैधानिक अधिकारों के हनन पर रिट याचिका
दायर करने का प्रावधान है और सभी कार्यपालक , न्यायाधीश तथा जन प्रतिनिधि संविधान और कानून की पालना की शपथ लेते हैं| आज हाई कोर्ट और
सुप्रीम कोर्ट में चल रहे 75प्रतिशत मामलों में सरकारें पक्षकार हैं जहां नागरिकों के अधिकारों का सरकारों ने
अतिक्रमण किया है | यदि इन शपथ पत्रों का कोई अर्थ है तो फिर ये याचिकाएं क्यों
दर्ज होती हैं |और इन शपथ पत्रों को भंग करने
वालों के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही क्यों नहीं ? यदि सरकारें
प्रतिबद्ध हों तो इन विवादों को टाला जा सकता है |
शांति
सुरक्षा और न्याय उनके एजेंडे में कहीं
नहीं है जबकि यह सरकार का मौलिक कर्तव्य है | अतिवादी, उग्रवादी गतिविधियाँ
सुरक्षा की नहीं अपितु सामाजिक और धन के असमान वितरण की समस्याएं हैं जिनका हथियारों के
दम पर आजतक समाधान नहीं हो पाया है | ये
सब गतिविधियाँ भी राजनीति और पुलिस के संरक्षण में ही संचालित हैं अन्यथा उन क्षेत्रों में व्यापार व परिवहन
आदि बंद क्यों नहीं होता |
भ्रष्टाचार या अन्य अनाचार से व्यापारी को
कभी कोई परेशानी नहीं होती क्योंकि जैसा कि
सोमपाल के मामले में न्यायाधिपति
कृष्णा इय्येर ने कहा है कि वह इन
सब खर्चों को वस्तु या सेवा की लागत में
जोड़ लेता है और उसका अंतिम परिणाम जनता को भुगतना पड़ता है |व्यापार बेईमानी का सभ्य नाम
है और यदि बेईमान को दण्डित करना
शुरू कर दिया जाये तो सबसे ज्यादा प्रभाव व्यापार पर पड़ेगा| धन
कमाना ही व्यापारी का एक मात्र धर्म
है | व्यापार में समय ही धन है अत: सरकारी मशीनरी काम में विलंब करती रहती है फलत रिश्वत मात्र अनुचित काम के लिए नहीं अपितु सही काम को जल्द करवाने
के लिए भी दी जाती है |
वैसे
पार्टी और विचाराधारा का आवरण तो जनता को बनाने के लिए है|
आज भी114 भूतपूर्व कांग्रेसी सांसद अन्य दलों
से चुन कर आये हैं और जो हिंदुत्व का दम भरते हैं वे अवैसी जैसे लोगों से हाथ मिला
लेते हैं जो कल तक कहते थे कि 15 मिनट के लिए पुलिस हटालें
तो हम 100 करोड़ हिन्दुओं का सफाया कर देंगे| हमारे राजनेता
तो तीर्थ यात्री हैं जो समय समय पर
अलग अलग घाटों पर स्नान करते हैं|
जब उत्तर प्रदेश जैसे सबसे बड़े
राज्य में बहुमत के आधार पर शासन
करने वाली बसपा एक भी सांसद चुनकर संसद में नहीं भेज सके तो लोकतंत्र
और विचारधारा तो एक मजाक से अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता | 5 साल राज करने के
लिए लोग कुछ दिन वोटों की भीख मांगते हैं
और बाद में उनके दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं | विधायिकाओं की कार्यवाहियां लगभग
पूर्व नियोजित और फिक्स्ड होती हैं |
जिस प्रकार फिल्म की शूटिंग के दौरान नायक और नायिका मात्र होठ हिलाते हैं
गाने और डायलाग तो पहले से रिकार्डेड होते हैं ठीक उसी प्रकार पक्ष और विपक्ष पहले
मिलकर कार्यवाही की रूप रेखा तय कर लेते
हैं |
वोट
किसी को देदो क्या फर्क पढ़ना है |यह राजनीति है एक बार इस ओर
से और फिर उस ओर से रोटियाँ दोनों
की सिक जायेंगी |एक सांपनाथ दूसरा नागनाथ | वैसे भी सांप का जहर 12 वर्ष तक असर रखता है |जब तक यह अंग्रेजों से विरासत में मिली व्यवस्था जारी है -जनता के सर पर तलवार लटकती रहेगी , पीठ पर पुलिस के
डंडे और पेट पर भ्रष्टाचार और महंगाई की मार पडती रहेगी ....किसी भी पार्टी को
जिताना मतलब उसे 5 साल के लिए मनमानी और भ्रष्टाचार फैलाने
का लाइसेंस देना मात्र है |
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