यों तो लोग
नेताओं और अधिकारियों के भ्रष्टाचर
की बड़ी बड़ी बातें करते हैं लेकिन
उनके घर समारोहों में बिना बुलाये ही जाना
अपना सौभाग्य समझते हैं जबकि किसी व्यक्तिगत या सामाजिक समारोह में भी नेता
और बड़े अधिकारी धन भेंट देने पर ही आते हैं – अन्य काम की बात तो छोड़ देनी चाहिए |
स्वास्थ्य लाभ के लिए हमारे राजनेता और बड़े अधिकारी एक बार मसाज पर ही 5-7 हजार खर्च कर देते हैं, उससे जुडे मनोरंजन और अन्य आतिथ्य व्यय तो अलग हैं |प्रश्न पूछने तक के लिए धन लिया जाता है |
सता
तो वैसे ही लक्ष्मी की चेरी होती है है | एक धर्म पंथ के धर्माचार्य का स्वर्गवास
हो गया | उस पंथ के सम्पूर्ण भारत में
ही साढ़े चार लाख मात्र अनुयायी हैं किन्तु
आचार्य की अंतिम यात्रा में शामिल होने के
लिए राष्ट्रपति, पूर्व राष्ट्रपति, कई प्रमुख मंत्री, विपक्ष के नेता आदि सभी पधारे
क्योंकि वह सम्प्रदाय व्यापारी वर्ग का है और देश की अर्थ व्यवस्था में हस्तक्षेप रखता है और
चंदे के नाम पर राजनेताओं को प्रोटेक्शन मनी देता है वरना इतने से लोगों के
धर्माचार्य की अंतिम यात्रा में कौन सा नेता आने को तैयार होगा |
देश की क्षुद्र
राजनीति में न तो भले लोगों के लिए
कोई प्रवेश द्वार हैं और यदि संयोगवश कोई
आ भी जाए तो उसके पनपने के अवसर नहीं हैं, उनके पर कतर दिये जाते हैं | इस कला में भाजपा, कांग्रेस और बसपा आदि
कोई पीछे नहीं है | वैसे भी भले लोग देश
का आखिर भला ही चाहते हैं अत: वे राजनीति में नहीं आना चाहते | उन्हें नेता कहलवाना एक गाली लगता
है | आज सफ़ेदपोश अपराधी, गुंडे, बदमाश , माफिया राजनीति में सक्रीय हैं और रिमोट
से देश की राजनीति को संचालित कर रहे हैं | यदि भले लोग राजनीति
में आ गए तो ये सब राजनेता बेरोजगार
हो जायेंगे और अपने पुराने
धंधों में लौट आयेंगे जिससे देश में अपराध , अराजकता, अशांति बढ़ जायेगी | यदि
भले लोगों को देश की राजनीति कोई महत्व दे तो उनका सक्रीय होना आवश्यक नहीं है
अपितु उनके दिये गए जन हितकारी
सुझावों पर अमल करना ही अपने आप में
पर्याप्त है | अपराधियों और राजनेताओं के अपवित्र गठबंधन के सम्बन्ध में वोरा
कमिटी द्वारा 21वर्ष पूर्व दी गयी सलाह पर
कार्यवाही की अभी प्रतीक्षा है |सरकारें सुधार की बिलकुल भी इच्छुक नहीं हैं -जब पूर्ण बहुमत में होती हैं तब मनमानी करती
हैं और अल्पमत में होने पर रोना रोती हैं
कि वे सहयोगियों के अनुसार
ही चल सकती हैं | पूर्व में जब
समस्त निर्माण कार्य सार्वजनिक विभाग के माध्यम
से होते थे तो जन प्रतिनिधि ( विधायक और सांसद) बिलकुल कडाके के दिन
गुजारते थे इसलिए वे इन कामों की शिकायतें
करते रहते थे | सरकार ने इस शिकायत को दूर
करने और जन प्रतिनिधियों को खुश करने के लिए सांसद और विधायक निधि की योजनाएं बना
डाली हैं | अब जन प्रतिनिधियों की मंजूरी से
ही यह निधि खर्च होती है और मंजूरी के लिए खर्च करना पडना है |
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