गुजरात
राज्य में औद्योगिक मजदूरों की दर्दनाक कहानी इस प्रकार है। गुजरात राज्य के
उद्योगपतियों को राज्य में अपने उद्योगों की स्थापना के लिए इसलिए एक आकर्षक
ठिकाना लगता है कि क्योंकि वहां उद्योगपतियों द्वारा मजदूरों का शोषण आसान हैं। श्रम के संरक्षण और सुरक्षा के करने के लिए
किसी भी कानून को लागू नहीं किया जा रहा
है।
उद्योगपति
मजदूरों को देश के कानून के तहत उपलब्ध सभी अधिकारों से वंचित कर रहे हैं। पीएफ और
प्रकीर्ण कानून गुजरात में उद्योगों में अपवाद
स्वरुप ही लागू है,
और वह भी एक यूनिट में श्रमिकों की सीमित संख्या के लिए है। राज्य
के भ्रष्ट प्रशासन - श्रम विभाग, पीएफ कमिश्नर, और इंस्पेक्टर सहित -के संरक्षण के द्वारा शायद ही राज्य के 10प्रतिशत श्रमिकों
को औद्योगिक इकाइयां
कानून के तहत कवर किया जाता है | कार्य
समय 12 घंटे की दो पारियों में विभाजित है और 24 घंटे के एक दिन के लिए संचालित औद्योगिक
इकाइयों काम करती हैं और ओवरटाइम सहित डबल
मजदूरी के लिए उनकी पात्रता के स्थान पर श्रमिकों को 8 घंटे एक दिन के लिए तय
न्यूनतम मजदूरी का ही भुगतान किया जाता है। इस स्थिति को बिजली की खपत और विभिन्न
इकाइयों में कार्यरत मशीनों की क्षमता से सत्यापित किया जा सकता है। अधिकाँश श्रमिक रोजगार कार्ड से वंचित हैं और जो श्रमिक 4-5 दिनों के लिए काम करने के बाद छोड़ कार्य देता
है उसे कोई मजदूरी का भुगतान नहीं किया
जाता है । कार्ड केवल 15-20 दिनों के लिए काम करने के बाद जारी किए गए हैं। कारखाना अधिनियम या अन्य कानूनों के तहत सुरक्षा उपायों
का लेशमात्र भी पालन नहीं कर रहे हैं। इन
सभी कानूनों को लागू करने के लिए जिम्मेदार सरकारी मशीनरी के सक्रिय सहयोग से
उल्लंघन कर रहे हैं। शायद ही 10-15प्रतिशत
कर्मचारियों को श्रम कल्याण कानूनों के
प्रयोजन के लिए रोल में दिखाया जाता है। दो पारियों के लिए वेतन रोल से छेड़छाड़
करके और तथाकथित श्रम सलाहकार की मदद से
श्रम कानूनों को लागू करने के लिए उत्तरदायी विभिन्न विभागों को तीन पारियों में समायोजित
व फिक्स और प्रबंधन कर लिया जाता हैं।
असंगठित क्षेत्र में श्रमिक बहुत कठिन
जीवन जी रहे हैं और कोई ट्रेड यूनियन राज्य में सक्रिय नहीं हैं। ट्रेड यूनियन का गठन करने के किसी भी प्रयास को
बेरहमी रौंद डाला जाता है और श्रमिकों के
कल्याण के लिए कोई संघ राज्य में कार्यरत नहीं है। कमजोर श्रमिक वर्ग की उसके नियोक्ता के
मुकाबले कोई सशक्त सौदेबाजी की शक्ति नहीं
होती है, इसलिए
राज्य को उनके बचाव के लिए आगे आना चाहिए है, लेकिन
उद्योगपतियों से प्रोटेक्शन मनी प्राप्त राज्य की भ्रष्ट मशीनरी अपने कर्तव्यों
का पालन करने के लिए अनिच्छुक हैं। जो कोई
भी हिम्मत कर एक श्रम संघ का आरंभ करना चाहे उसे पुलिस के साथ मिलकर झूठे आपराधिक
मामले में फंसा कर ऐसी पहल से वापस लेने के लिए मजबूरकर दिया जाता है और ऐसे पवित्र प्रयास को नाकाम कर दिया जाता हैं । राज्य के हीरा उद्योग के श्रमिकों के शोषण
भी शीर्ष पर है।
श्रमिकों
को साप्ताहिक छुट्टी नहीं दी जाती है तथा उन्हें दैनिक
मजदूरी के आधार पर, और बिना किसी अवकाश
लाभ के, भुगतान कर रहे हैं । आदेश विशिष्ट
आधार पर कार्य कर रहे उद्योगों में मनमर्जी से और बिजली कटौती के कारण अवकाश के घोषित कर रहे
हैं। शायद ही 2-3प्रतिशत श्रमिक समूह बीमा पॉलिसियों के अंतर्गत आते हैं और
श्रमिकों को दुर्घटनाओं, और यहां तक कि
लोगों की मृत्यु पर मुआवजा से इन्कार कर रहे हैं। यह भी ज्ञात हुआ है कि समुद्र किनारे या नदी के किनारे के संचालित औद्योगिक इकाइयों में दुर्घटनाओं के शिकार लोगों
के शव समुद्र या नदी फेंका जा सकता है और मुआवजे के भुगतान के लिए कानूनी दायित्व
से बचने के लिए श्रमिकों के निशान तक मिटाये जा सकते है। उद्योगपति अपने उत्पादों पर
उचित उत्पाद व अन्य शुल्क चुकाए बिना बेच
रहे हैं और जिससे राजस्व हितों को भी हानि
हो रही है ।
व्यापारी
लोगों को श्रमिकों के शोषण का निर्बाध अधिकार दे दिया गया और उसके बदले वे सत्तासीनों को चंदे रूप में प्रोटेक्शन मनी और अपना समर्थन
भी देते हैं | गुजरात में वैसे भी व्यापारी और शहरी जनसंख्या भारत के औसत 20प्रतिशत
के स्थान पर 40प्रतिशत है| अधिकारी निर्भय
होकर रिश्वत लेते हैं अत: वे भी सरकार और
सत्ता का ही समर्थन करते हैं | सम्प्रदाय विशेष के लोग भी डर के मारे
सत्ता को ही वोट देते हैं | शेष रहे कमजोर लोगों का भी सत्ता का विरोध करने का कोई साहस नहीं
होता |
No comments:
Post a Comment