Sunday, 21 December 2014

कानून को चाहे कितना ही सख्त बना दिया जाए आखिर वह रसूख और पैसे के दम पर नरम हो जाता है

देश के कुछ तथाकथित अति बुद्धिमान लोगों का यह भी मत है कि जनता में  सक्रियता नहीं है | मेरा उनसे एक प्रश्न है कि  आम जनता में सक्रियता है या नहीं अलग बात हो सकती है किन्तु जो सक्रीय हैं उनके अधिकाँश आवेदन भी तो किसी न किसी  बनावटी बहाने से रद्दी की  टोकरी की भेंट चढ़ रहे या असामयिक अंत झेल रहे हैं  जो नीतिगत मामला  मंत्री को तय करना चाहिए उसे सचिव  ही निरस्त कर रहे हैं | यदि सचिव  ही नीतिगत मामले  पर  निर्णय लेने हेतु सक्षम हो तो फिर मंत्री  की  क्या भूमिका हो सकती  है|  जनता के सामान्य स्वर को नजर अंदाज किया जाता  है और ऊँचे स्वर को पुलिस की गोली, लात घूंसे और लाठियों से कुचल दिया जता है | यही अंग्रेज करते थे, यही कांग्रेस और यही भाजपा | देश में गरीबी बहुत अधिक है  और   मात्र 3प्रतिशत  लोग ही आयकर दाता है  तथा  70प्रतिशत  लोगों को दो जून  की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है , बेरोजगारी, भ्रष्टाचार  और महंगाई सुरसा की तरह मुंह बाए  खड़े है | ऎसी  स्थिति में आंम  नागरिक क्या करेगा ? जनता की  सक्रियता में और क्या होना चाहिए या क्या कमी है यह कोई बता सकता है क्या?  जब जन प्रतिनिधियों को जनता की आवाज उठाने के लिए चुनकर भेज दिया गया तो जनता की बात को अपना स्वर देना उनका कर्तव्य है |  यदि वे ऐसा नहीं करते तो फिर चुनाव का भारी खर्चा क्यों किया जाए ? फिर अंग्रेजों के राज में और इस तथाकथित लोकतंत्र में फर्क क्या रह  जाता है | क्या इसी तरह शासन संचालित होने के लिए हमारे पूर्वजों ने क्रांति की थी ?

शायद  कुछ लोगों को परिवर्तन  की आशा हो किन्तु इस देश में कोई क्रांति भी नहीं होगी |क्रांति के लिए जनता का अति पीड़ित होना आवश्यक है जोकि ये राजनेता कभी नहीं होने देंगे | जनता को थोडा थोड़ा आराम देते रहेंगे| प्यासे को चमच  से पानी पिलाते  रहेंगे  ताकि न  तो उसकी प्यास बुझे और न उसकी प्यास बुझाने कि दिलासा   टूटे|  यह हमें लगातार गुलाम बनाए रखने की एक सुनियोजित कूटनीति का हिस्सा है | अमेरिका में भी रोटरी क्लब का गठन रूस की क्रांति के बाद इसीलिए हुआ था कि कहीं गरीब लोग दुखी होकर रूस की  तरह क्रांति नहीं कर दें इसलिए इनकी थोड़ी थोड़ी मदद करते रहे हो ताकि इनके मन में यह विचार रहे कि धनवान उनके प्रति हमदर्दी रखते हैं| सरकारों के लुभावने नारे और सुधार कार्यक्रम मौसमी और वायरल बुखार की तरह हैं जो कुछ दिनों बाद शून्य  परिणाम  के साथ अपने आप उतर जाते  हैं |

कहने को तो सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दे रखें  हैं कि नारी सुरक्षा हेतु सिटी बसों में सादा वर्दी में पुलिस को तैनात किया जाए किन्तु स्वयं दिल्ली पुलिस में ही सौ से अधिक बलात्कार  के आरोपी कार्यरत हैं| पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी अपनी कनिष्ठ  महिला पुलिस कर्मी से प्रणय निवेदन करते हैं और वे यदि इस पर सहमत न हों  तो उसकी ड्यूटी ऐसे विषम समय और स्थान पर लगाते  हैं कि उसे कठिनाई  हो और वह समर्पण कर दे | उसे कहा जाता है कि  वह कुछ समय वरिष्ठ  के बिस्तर की शोभा बनकर  अपना शेष दाम्पत्य जीवन भोग सकती है अन्यथा उसकी ड्यूटी रात में लगा दी  जाती है| न  केवल  महिला  कर्मियों बल्कि कनिष्ठ पुलिस कर्मियों की भी ड्यूटी ऐसी विषम परिस्थितियों और समय में लगाई जाती है ताकि वे अपना सुखमय दाम्पत्य जीवन व्यतीत नहीं कर सकें |  अपना यदि वे अपना सुखमय दाम्पत्य जीवन  चाहें तो उनसे अपेक्षा की   जाती है कि   वे अपनी बीबी को उन वरिष्ठ के बिस्तर की शोभा बनाएं| वैसे  पुलिस वालों को खुद को पता है कि उनकी समाज में कितनी इज्ज़त है इसलिए वे फेसबुक पर प्रोफाइल में कहीं  भी अपना पुलिसिया काम नहीं लिखते| ऐसा करने पर कोई उनसे दोस्ती नहीं करना चाहेगा|वरिष्ठ पुलिस अधिकारी गिल और राठोर ने भी पुलिस का नाम काफी रोशन किया   है| न्यायाधिपति स्वतंत्र कुमार और गांगुली भी इसी श्रृंखला का हिस्सा रह चुके हैं |कानून  को चाहे कितना ही सख्त बना दिया जाए आखिर वह रसूख और पैसे के दम पर नरम  हो  जाता है |

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