सुप्रीम कोर्ट ने बहादुरसिंह लखूभाई गोहिल बनाम जगदीश भाई (2004 (2) एससीसी 65) में कहा है कि अनावश्यक जल्दबाजी में किया गया कार्य दुर्भावनापूर्ण ठहराया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने चारा घोटाला प्रमुख प्रकरण बिहार राज्य बनाम पी.पी.शर्मा (1991 एआईआर 1260) मे स्पष्ट किया है पुलिस का प्राथमिक कर्त्तव्य अपराध घटित होने के साथ साक्ष्य संग्रहण करना तथा छानना है। यह देखने के लिए कि क्या अभियुक्त ने कोई अपराध किया है या विश्वास करने का कारण है और उपब्लध साक्ष्य अभियोग को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है और सक्षम मजिस्ट्रेट को अपराध का प्रसंज्ञान लेने के लिए रिपोर्ट भेजे। अनुसंधान अधिकारी कानून की एक भुजा है तथा आपराधिक न्याय प्रशासन तथा कानून व व्यवस्था बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। पुलिस अनुसंधान नींव का पत्थर है जिस पर आपराधिक अन्वीक्षा का भव्य भवन खड़ा है जिसमें कि चूक से न्यायिक स्खलन की परिणति हो सकती है तथा अभियोजन दोष मुक्ति में बदल सकता है। अनुसंधान अधिकारी का कर्त्तव्य तथ्यों का विनिश्चयीयकरण ,अर्द्धसत्य या टूटे फूटे कथन में से घटनाओं की कड़ी जोड़ने वाले सत्य को निकालना है। अनुसंधान अधिकारी कानून की पूर्ण अनुपालना करते हुए सत्य का पता लगाने के लिए गहन अनुसंधान करेगा व व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का ध्यान रखेगा। विवेकाधिकार में कार्य करना मनमानेपन से कार्य करना नहीं होगा। यह कोई पीड़ादायी शक्ति नहीं है, न ही किसी मनमानेपन से जुड़ी है, न ही यह कानूनी गैर जिम्मेदारी, दूषित उद्देश्य के लिए निर्धारित शर्तों को अमान्य करते हुए कानूनी आधारों से अधिक विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग करना है। दुर्भावना का अर्थ सद्विश्वास का अभाव, व्यक्तिगत पक्षपात, असंतुष्टि, छुपा हुआ या अनुचित या दूषित उद्देश्य है। लोक प्रशासन न्यायिक अलगाव से नहीं चलाया जा सकता। परिणाम यह होगा कि अपराध बिना पता लगे रह जायेंगे और समाज को लाइलाज क्षति होगी। अपराधी दुस्साहसी हो जायेंगे तथा लोग कानून और व्यवस्था की दक्षता में विश्वास खो देंगे। लोक सेवक का यह कोई कर्त्तव्य नहीं है कि वह षड़यन्त्रकर रिकॉर्ड में जालसाजी करे, खातों का मिथ्याकरण करे, छल या दुर्विनियोग करे या अवैध पारितोषण मांगे या स्वीकार करे यद्यपि शक्तियों के प्रयोग ने उसे अपराध करने का अवसर दिया है। न्यायालय अवैधता एवं अन्याय के नाटक में मूक दर्शक नहीं है। बिना स्वीकृति के आरोप पत्र दाखिल करना अवैध नहीं है और न ही यह पूर्ववर्ती शर्त है। प्रसंज्ञान से भी पहले आरोप पत्र को निरस्त करना नवजात शिशु का वध है। जब तक अपराधिक न्यायालय अपराध का संज्ञान नहीं लेता तब तक कोई अपराधिक कार्यवाही बकाया नहीं है। आपराधिक मामले का त्वरित अन्वीक्षण महत्वपूर्ण नियम है। विलम्ब सामाजिक व्यवस्था को अन्याय देता है और रिट याचिका व्यवहृत करना, विलम्ब को प्रोत्साहित करेगा विभिन्न चालाकियों से एक अभियुक्त विलम्ब के उद्देश्य से रिट याचिका का सहारा लेता है कई गुणावगुण के प्रश्न उठाता है और कार्यवाही को लम्बित रखना चाहता है। परिणाम यह होगा कि लोग विधि शासन की दक्षता में विश्वास खो देंगे।
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