Wednesday 17 August 2011

पुलिसवाले अपने आप में कानून नहीं हैं

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एफ.डी. लारकिन्स बनाम राज्य (1984 (2) क्राईम्स 734) में कहा है कि सारांश  रूप में परिवादी या उसके साक्षियों की धारा 200 या 202 के अन्तर्गत परीक्षा किये बिना सत्र न्यायाधीश को मामला कमिट करने में कोई तात्विक अनियमितता या कानूनी कमजोरी से ग्रसित नहीं है। दूसरे शब्दों में वर्तमान प्रकरण में कमिटमेन्ट पूर्णतया वैध तथा उचित है और इस न्यायालय के हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है। फिर भी जैसा कि पूर्व में पाया गया परिवाद को व्यक्तिशः प्रस्तुत नहीं करना कोई क्षेत्राधिकार की ऐसी चूक नहीं है जिसे प्रारम्भ में ही मूल पर काट दिया जावे या ऐसी कोई सारभूत चूक नहीं है जिससे न्याय हेतु विफल होता हो।

मद्रास उच्च न्यायालय ने भी ए.नलासिवन बनाम तमिलनाडू राज्य (1995 क्रि.ला.ज. 2754 मद्रास) में कहा है कि यदि एक पुलिस अधिकारी दं.प्र.संहिता की धारा 160 (1) ( साक्ष्यों को स्वयं के थाना क्षेत्र या उसके चिपते क्षेत्र  से महिला एवं १५ वर्ष से छोटे बच्चों को छोड़कर बुलाना) के विपरीत कार्य करता है तो उसे तुरन्त दण्डित किया जाना चाहिए क्योंकि पुलिस वाले अपने आप में कानून नहीं हो सकते जो दूसरों से कानून पालन की अपेक्षा रखें।

No comments:

Post a Comment