Tuesday, 23 August 2011

अवमान में अधिकारी का नाम नहीं होने पर भी दण्डित किया जा सकता है

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सावित्री देवी बनाम सिविल जज (एआईआर 2003 इलाहा 321) में कहा है कि अवमान कार्यवाही में अर्द्ध आपराधिक प्रकृति के कारण प्रमाण का स्तर तथा भार आपराधिक कार्यवाही के समान है। यह सुनिश्चित है कि एक सह-हिस्सेदार अपना हिस्सा अंतरण/भारित कर सकता है किन्तु यदि सम्पति का नाप तौल कर विभाजन नहीं किया तो अन्तरिती को कब्जा नहीं दिया जा सकता। इसलिए अंतरिती के लिए यदि विभाजन नहीं होता है तो कब्जा लेने की अनुमति नहीं है। यहां तक की निगम निकाय संस्थायें जैसे कि नगरपालिका/सरकार को भी दण्डित किया जा सकता है चाहे पक्षकार के रूप में किसी अधिकारी का नाम न हो।
सुप्रीम कोर्ट ने डॉ0 डी.सी. सक्सेना (एआईआर 1996 सु0को0 2481) में कहा है कि वकील या पक्षकार जो कि व्यक्तिशः उपस्थित होता है अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता दी गई है किन्तु जैसा कि ऊपर कहा गया है उनका समान रूप से यह कर्तव्य है कि वे न्यायालय कार्यवाही में गरिमा, अनुशासन तथा व्यवस्था बनाये रखेंगें। मुक्त अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ किसी भी संस्था पर निराधार आरोप लगाने से नहीं है। तद्नुसार न्यायधीशों को निष्पक्ष बने रहना चाहिये और लोगों द्वारा उनका निष्पक्ष होना जाना चाहिये। यदि उन पर अपवित्र उद्देश्य से पनपती भ्रष्टता एवं भेदभाव आदि का आरोप लगाया जाये तो लोग उनमें विश्वास खो देंगे।

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